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가사
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गुरु गोविंद दोऊ खड़े, काके लागूं पाए, बलिहारी गुरु आपने, गोविन्द दियो बताय। कबीर…गोविन्द दियो बताय। यह तन विष की बेलरी, गुरु अमृत की खान, सीस दिए से गुरु मिले, वो भी सस्ता जान। कबीर…वो भी सस्ता जान। ऐसी वाणी बोलिये, मन का आप खोये, औरन को शीतल करे, आपहु शीतल होये। कबीर…आपहु शीतल होये। बड़ा भया तो क्या हुआ, जैसे पेड़ खजूर, पंथी को छाया नहीं, फल लागे अति दूर। कबीर…फल लागे अति दूर। निंदक नियरे राखिये, आँगन कुटी छवाए, बिन साबुन पानी बिना, निर्मल करे सुभाए। कबीर…निर्मल करात सुभाए। बुरा जो देखन मैं चला, बुरा ना मिल्या कोई, जो मन देखा अपना, तो मुझसे बुरा ना कोई। कबीर…तो मुझसे बुरा ना कोई। दुःख में सुमिरन सब करे, सुख में करे न कोई, जो सुख में सुमिरन करे, तो दुःख कहे को होये। कबीर…तो दुःख कहे को होये। माटी कहे कुम्हार से, तू क्या रोन्धे मोहे, एक दिन ऐसा आएगा, मैं रोंधुंगी तोहे। कबीर…मैं रोंधुंगी तोहे। मालिन आवत देख के, कलियाँ करे पुकार, फूले फूले चुन लिए, काल हमारी बार। कबीर…काल हमारी बार।
